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मध्यप्रदेश

भाजपा का गुजरात मॉडल और गुजरात की शराब बंदी को लेकर पूरे प्रदेश में चर्चा...

भोपाल, 04दिसम्बर ; मध्यप्रदेश के अकेले झाबुआ और अलीराजपुर के शराब कारोबारियों के 300करोड़ सालाना रिश् वत देने की वजह से गुजरात में 30 हजार करोड़ का शराब कारोबार बढ़ा? जिसके कारण गुजरात के सरकारी खजाने को प्रतिवर्ष 20 हजार करोड़ का नुकसान पहुंच रहा है। इससे ही कुछ मिलती-जुलती स्थिति मध्यप्रदेश की भी है, यह सभी जानते हैं कि गुजरात में विगत छह दशकों से शराब बंदी लागू है।
लेकिन राजनेताओं, पुलिस, आबकारी अधिकारियों व अवैध शराब कारोबारियों के गठबंधन के चलते हाल ही में गुजरात में हो रहे विधानसभा चुनाव में जहां मतदान हो रहे हैं वहां शराब पानी की तरह बहाई गई है। इस राजनैतिक और पुलिस की सांठगांठ से संचालित इस शराब कारोबार कारोबार का खुलासा पहली बार नेशनल टीवी चैनल और नेशनल मीडिया में गुजरात की शराब बंदी की हकीकत पहली बार उजागर हुई ।
यह सभी जानते हैं कि मध्यप्रदेश के उस आदिवासी जिला अलीराजपुर जिसे इस प्रदेश का सबसे गरीब जिला माना जाता है, लेकिन शराब कारोबारियों और अवैध रेत माफिया के कारोबार के चलते यह जिला इन दिनों कारोबार के मामले में काफी चर्चाओं में बना हुआ है। पिछले दिनों समाचार पत्रों की सुर्खियों में यह खबर भी बहुत सुर्खियों में बनी रही जिसके तहत आदिवासी बाहुल्य झाबुआ के छोटे-छोटे गांव जिनकी आबादी पांच से छह हजार मात्र है उन आबादी वाले गांवों में मध्यप्रदेश सरकार का शराब का ठेका 13 से 14करोड़ रुपये तक में दिया जाता है यदि इस राशि और वहां की आबादी का अनुमान लगाया जाए तो इन गांव में रहने वाले गरीबी रेखा से नीचे का व्यक्ति भी प्रतिदिन छह सौ रुपये की शराब पीता है।
हालांकि वास्तव में यह स्थिति नहीं है यह सभी जानते हैं कि शराब कारोबारियों द्वारा इन जिलों के छोटे-छोटे गांवों में करोड़ों का शराब ठेका लेने के बाद भी पांच हजार रुपये तक में शराब की बिक्री नहीं होती, लेकिन इन जिलों के आबकारी अधिकारियों, पुलिस प्रशासन व राजनेताओं के संरक्षण के चलते सारी शराब गुजरात अवैध रूप से पहुंचाकर छह दशकों से शराब बंदी वाले गुजरात राज्य में शराब की यह स्थिति कर दी गई कि इस विधानसभा चुनाव में यह शराब मतदाताओं को गुजरात में पानी की तरह उपलब्ध कराये जाने की खबरें भी हैं। इन दोनों जिलों के आबकारी ठेकेदारों के द्वारा प्रतिवर्ष जो तीन सौ करोड़ रुपये रिश्वत के रूप में राजनेताओं, पुलिस और आबकारी अधिकारियों को बांटी जाती है, उसी का नतीजा है कि आज शराब बंदी के नाम से चर्चित गुजरात में ३० हजार करोड़ रुपये का कारोबार बदस्तूर फल-फूल रहा है। तो वहीं आदिवासी बाहुल्य और मजदूरों वाले इलाकों में बड़ी मात्रा में कच्ची शराब अवैध तरीके से मुहैया कराई जा रही है।
पिछले छह दशकों से शराब बंदी लागू होने के बाद 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से शराब गुजरात में मिल रही है उसे देखते हुए लोग यही कहते हुए नजर आ रहे हैं कि मध्यप्रदेश के अवैध शराब कारोबारियों के कारोबार के बदौलत आज गुजरात में भाजपा सरकार का नहीं बल्कि शराब माफियाओं का राज चल रहा है।
गुजरात के अधिकारियों के सूत्रों पर भरोसा करें तो गुजरात में यदि शराब बंदी नहीं होती तो गुजरात सरकार के खजाने को आज २० हजार करोड़ रुपये से अधिक की आय होती? लेकिन भाजपा के गुजरात सरकार के मॉडल के चलते सरकारी खजाने को यदि कोई नुकसान पहुंचा रहा है तो उसके पीछे भी मध्यप्रदेश की भाजपा की सरकार है जिसके अधिकारियों व राजनेताओं के संरक्षण में नशाबंदी वाले प्रदेश गुजरात में अवैध शराब का कारोबार दिन दूना पनप रहा है।
यदि गुजरात से सटे दो जिलों के अधिकारियों, राजनेताओं व पुलिस से सांठगांठ के संरक्षण में यह अवैध कारोबार चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब गुजरात में भी आज की स्थिति में कई ज्यादा शराब का कारोबार पनपता नजर आएगा और छह दशकों से शराब बंदी लागू होने के बावजूद भी गुजरात प्रदेश मध्यप्रदेश की तरह अवैध शराब का कारोबार जमकर फलेगा-फूलेगा। कहने को तो गुजरात में भाजपा की सरकार है लेकिन यहां अवैध शराब की बिक्री पर दस साल की कैद पांच लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है? गुजरात में 1960 से शराब बंदी लागू है। इसी गुजरात में 2017 में इस कानून को गुजरात सरकार ने और सख्त बना दिया था मगर वह सख्त कानून अन्य सरकारों की तरह कागजों पर ही सख्त नजर आता है। गुजरात में शराब के हर तरह के ब्रांच मध्यप्रदेश की सरकार की तरह घर पहुंच सेवा का रूप लेकर आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं? वहीं गुजरात प्रदेश के ३३ जिलों में आसानी से मध्यप्रदेश और राजस्थान व अन्य प्रांतों के शराब कारोबारियों की मेहरबानी से आसानी से उपलब्ध हेा जाती है । नशाबंदी के कानून लागू होने के बाद भी गुजरात में यह स्थिति है कि देशी हो या विदेशी शराब जिलों में हर कस्बे में आसानी से शराब पीने वालों को इस तरह से उपलब्ध हो जाती है । जिस प्रकार मध्यप्रदेश में मध्यप्रदेश की सरकार और उसके छोटे जिलों में रहकर अपनी कारगुजारी दिखाकर कमाई करने वाले अधिकारी को जिस प्रकार से मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पदस्थ करके यहां की स्थिति यह हो गई है कि अभी तक तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अपने प्रवास के दौरान सार्वजनिक रूप से यह पूछते हैं कि किराने की दुकान पर शराब मिल रही है या नहीं। मगर जिस राजधानी में स्वयं मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि आबकारी विभाग का पूरा अमला मौजूद हो? उस राजधानी के साँची पार्लरों से लोगों को दूध के साथ-साथ आसानी से शराब उपलब्ध हो रही है । तो वहीं जबलपुर में भी सब्जी मण्डी में सब्जी के साथ शराब बिक्री की घटनाएं भी विगत दिनों सुर्खियों में रही थी। मध्यप्रदेश की इसी स्थिति की वजह से झाबुआ जिले के पेटलावद जैसे एक छोटे से गांव में इंदौर जैसे महानगरों से कई अधिक शराब तो छोड़ो बीयर प्रतिवर्ष बिक जाती है।  पता नहीं यहां बिकने वाली बीयर कितनी वैध होती है कितनी अवैध या इन जिलों अलीराजपुर और झाबुआ के आबकारी और पुलिस के साथ-साथ राजनेता को ही पता होगा? जिनके लिये यह शराब कारोबारी 300 करोड़ रुपये रिश्वत की राशि पहुंचाते हैं।  यही वजह है कि छह दशकों से नशामुक्ति कानून गुजरात में लागू होने के बावजूद भी अवैध शराब कारोबारियों और राजनैतिक संरक्षण के चलते भाजपा का गुजरात मॉडल वाले प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में शराब को पानी की तरह मतदाताओं को उपलब्ध कराये जाने की भी चर्चायें जोरों पर हैं।  इस स्थिति को देखकर लगता है कि मध्यप्रदेश में होने वाले हर छोटे से लेकर  चुनावों के दौरान शराब का कितना उपयोग होता होगा, इसका तो अंदाजा ही लगाया जा सकता है.| 

04 December, 2022

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