नई दिल्ली 11 सित. ; पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा है कि लिव-इन में रह रहे वैसे जोड़े भी सुरक्षा के हकदार हैं जिन्हें सुरक्षा का खतरा हो, भले ही उस जोड़े में से कोई भी किसी गैर के साथ विवाहित क्यों न हो। यश पाल बनाम राज्य सरकार के एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की पीठ ने कहा कि ऐसे लिव-इन रिलेशनशिप के सामाजिक और नैतिक प्रभाव के बावजूद, उस जोड़े को विभिन्न स्वरूपों में स्वायत्तता भी दी गई है।
पीठ ने कहा, “जब लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े में से कोई एक विवाहित होता है, तो इस प्रकार के संबंधों में रहने वाले लोगों को संबंधित परिवार के सदस्यों या किसी नैतिक निगरानीकर्ता द्वारा धमकियाँ दी जाती हैं। इस तरह ऐसे लिव-इन में रह रहे जोड़ों को सुरक्षा का दावा करने का हक है। हालांकि, हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े में से किसी भी साथी का अगर कोई नाबालिग बच्चा है, तो अदालत माता-पिता को उस बच्चे की देखभाल करने का निर्देश दे सकती है। खंडपीठ ने सुरक्षा मामले में सिंगल बेंच के फैसले में दिए गए संदर्भ का उत्तर देते हुए यह फैसला दिया है। सिंगल बेंच के जज ने विरोधाभासी निर्णय दिया था।
सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कुछ सवाल उठाए गए थे। कोर्ट ने पूछा था कि क्या अगर लिव-इन में रहने वाले दो व्यक्ति उचित याचिका दायर करके अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा चाहते हैं,तो कोर्ट को उनकी वैवाहिक स्थिति और उस मामले की अन्य परिस्थितियों की जांच किए बिना उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की जरूरत है? इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर उपरोक्त का उत्तर नकारात्मक है, तो ऐसी कौन सी परिस्थितियां हैं जिनमें न्यायालय उन्हें सुरक्षा देने से इनकार कर सकती है? इस फैसले के बाद पीड़ित जोड़े ने हाई कोर्ट की डबल बेंच का दरवाजा खटखटाया था।
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