साल 2011 की जनगणना के हिसाब से भारत में तकरीबन 5 लाख ट्रांसजेंडर रहते हैं.
अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग की मान्यता तो दी लेकिन इसके बावजूद उनकी सामाजिक स्थिति में ज्यादा बदलाव नज़र नहीं आता है.
ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए सामाज में दिक्कतें शायद सबसे ज़्यादा सार्वजनिक शौचालय के इस्तेमाल के समय आती हैं.
मुंबई की एकता हिंद सोसायटी के ट्रांसजेंडरों ने अब एक पहल के तहत उनके लिए अलग से शौचालय बनाए हैं. ऐसे शौचालय गोवंडी के शिवाजी नगर इलाके में बनाए जा रहे हैं.
एकता हिंद सोसायटी के राईन अब्दुल सत्तार कहते हैं, "एक दिन अचानक बस्ती का एक बच्चा बड़ा होकर ट्रांसजेंडर बन गया. अब उसके प्रति लोगों का नजरिया बदल गया था. अक्सर बस्ती के आम लोग सार्वजनिक जगहों पर उससे मुंह फेर लिया करते थे. तभी मेरे मन में ऐसा शौचालय बनाने का ख़्याल आया."
गोवंडी स्लम आमतौर पर हिंसा, अपराध और नशेड़ियों का अड्डा माना जाता रहा है. ऐसे में ट्रांसजेंडरों के साथ छेड़खानी भी यहां आम बात है.
स्लम स्वच्छता अभियान के तहत राईन अब्दुल सत्तार ने बस्ती में सार्वजनिक शौचालय बनाना शुरू किया. उन्होंने ट्रांसजेंडरों के लिए अलग शौचालय बनाया ताकि बस्ती के ट्रांसजेंडर किसी भेदभाव का सामना किए बगैर शौचालय इस्तेमाल कर सकें.
इस पहल से ट्रांसजेंडरों के बीच खुशी का माहौल है. ट्रांसजेंडर चाहत बताती हैं, "बहुत अच्छा हुआ जो हमारे लिए अलग से शौचालय खुला. अब मैं बिना रोक-टोक और बगैर संकोच के किसी भी समय इसका इस्तेमाल कर सकती हूं."
वहीं चाहत की सहेली ख़ुशी को अफ़सोस है कि उसकी बस्ती में ऐसा शौचालय क्यों नहीं खुला?
ख़ुशी के मुताबिक़, "जहां किन्नर ज़्यादा हों वहां तो उनके लिए अलग शौचालय होना ही चाहिए."
ख़ुशी ट्रांसजेंडरों की परेशानी के बारे में बताती हैं, "हम अक्सर असमंजस में पड़ जाते हैं कि महिला शौचालय का इस्तेमाल करें या पुरुष? पुरुष शौचालय में हमें बुरी निगाहों से देखा जाता है, तो वहीं महिला शौचालय में हमें अपमान का सामना करना पड़ता है. ये सब हमारे लिए आम है."
लेकिन जहां इस पहल से एक तबका खुश है तो दूसरी ओर इस शुरुआत को वर्ग विभाजन की संज्ञा भी दी जा रही है. भारत की जानी-मानी ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की ट्रांसजेंडरों के लिए अलग शौचालय पर अलग राय है.
लक्ष्मी त्रिपाठी कहती हैं, "जहां बात ट्रांसजेंडरों की सुरक्षा की आती है, वहां अलग शौचालय होना बेहद ज़रूरी है. लेकिन किन्नर समुदाय को मुख्य धारा से जुड़ना है, तो अलग से कुछ करने की ज़रूरत नहीं है. "
लक्ष्मी त्रिपाठी के मुताबिक़, "स्कूल, कॉलेज और शैक्षिक संस्थानों में अलग शौचालय की ज़रूरत है, क्योंकि किशोरावस्था में जो बच्चे ट्रांसजेंडर जैसे लगते है उनका शोषण होने की ज़्यादा संभावनाएं होती हैं.
लक्ष्मी को लगता है, "ये सारी बातें ट्रांसजेंडर पर छोड़ देनी चाहिए कि वयस्क होने पर वो किस शौचालय का इस्तेमाल करना चाहते हैं और इसके बारे में लोगों को शिक्षित किए जाने की ज़रूरत है."अपनी बस्ती की सफलता देखकर अब्दुल सत्तार अब दर्ज़नों बस्ती में ऐसे शौचालय खोलने की कोशिश में जुट गए हैं.
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