रायगढ़ ! पूरे भारत में जहां होली की धूम रहती है और लोग रंगो और गुलाल से सरोबार होकर एक दूसरे को बधाई देते है साथ ही साथ इस माहौल में चारो तरफ अलग-अलग टोलियां ढोल व नगाड़ों की थाप पर थिरकते हुए होली का त्यौहार मनाते है पर रायगढ़ जिले के खरसिया विधानसभा क्षेत्र में ग्राम नंदेली एक ऐसा गांव है जहां न तो रंग लगाया जाता है और न ही गुलाल के बल पर होली खेली जाती है यहां होली के दिन डंडा नाच कर नये कपड़ों में होली मनाई जाती है और कोई भी इनके उपर रंग नहीं डालता। क्या बच्चे क्या बुढ़े और क्या नवजवान सभी इस डंडा नांच की धून में मस्त हो जाते है। इतना ही नही वर्षो पुरानी इस परंपरा का निर्वहन आज भी युवा पीढी और बच्चे पूरी लगन के साथ करते है।
नंदेली में रंग व गुलाल की बजाए डंडा नाच के जरिये इस त्यौहार को मनाया जाता है और नये कपड़ो को पहनकर युवा और स्कूली बच्चे सुबह से ही अपनी तैयारी करते हुए गलियों में निकल पड़ते है जहां ढोल व नगाडो की थाप पर डंडा नाच शुरू होता है। इस डंडा नाच के जरिये वे घर-घर जाकर न केवल पैसा इकट्टा करते है बल्कि होली भी मनाते है। बीते कई सालों से इस रीति रिवाज को मनाने की परंपरा चली आ रही है और सुबह युवाओं की टोली निकलती है और उसके बाद देर शाम तक झूम-झूम कर नाचने गाने के ये अपने घरों को लौट जाते है। अकेले केवल ग्राम नंदेली में ये डंडा नाच होता है और बुजुर्गो की मानें तो उनके दादा परदादा के समय से चली आ रही है और फसलों के कटते समय पुराने मजदूर बदले जाते है और नये शामिल किया जाता है और यहीं से शुरू हो जाता है नाच गाना वह बताते है कि 15 दिन पहले से ही यह शुरूआत हो जाती है और नाचने गाने के बाद घर-घर जाने पर राजी खुशी से उन्हें घर के लोग दान भी देते है जिससे सभी लोग बंटवारा करते है। यह लगातार एक दशक से चल रहा है जिसे लगातार यहां के लोग जीवित रखने के लिये करते आ रहें है इस परंपरा को और इसे अधिक रोमाचित करने के लिये प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है। इतना ही नही इस डंडा नाच उत्सव में स्कूली बच्चे भी बढ चढकर हिस्सा लेते है और इस नाच को देखने के लिये गांव का माहौल देखते ही बनता है।
गांव के लोगों का कहना है कि पूर्वजों के समय से वे इस नाच में अपने साथियों के साथ शामिल होते है और पीढी दर पीढ़ी इस परंपरा को जीवित रखने के लिये वे प्रयास कर रहें है। वहीं गांववाले कहते है कि गांव में त्यौहार को मनाने के लिये एक उत्सव का रूप दिया जाता है और इसी उत्सव ने एक परंपरा को जीवित किया है। जो हर साल फागून के त्यौहार में मनाया जाता है।
बहरहाल सदियों पुरानी इस परंपरा को हर साल फागुन के त्यौहार में मनाने का यह अनोखा तरीका देखते ही बनता है चूंकि आज के बदलते परिवेश में सादगी से होली बनाने की परंपरा बंद सी हो गई है लेकिन ग्राम नंदेली के इस डंडा नाच को देखकर यह बात साफ हो जाती है कि बुजुर्गो द्वारा बनाई गई परंपरा को निर्वाह करने का सिलसिला लगातार जारी है।