कुछ लोगों पर किए अध्ययन से पता चला कि अंधेरे में शरीर में अधिक मेलटोनिन बनता है जबकि उजाले में इसके निर्माण में कमी आ जाती है। शाम के चमकीले प्रकाश या दिन का थोड़ा कम प्रकाश शरीर के सामान्य मेलटोनिन चक्र पर असर डाल सकता है।स्विट्जरलैंड के बेसल विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर क्रिश्चियन कैजोहेन और उनके साथियों के अध्ययन में यह सुझाव दिया गया है कि चंद्रमा का प्रभाव इसकी चमक से संबंधित नहीं हो सकता। कैजोहेन यह भी बताते हैं कि 'चंद्रमा की गति इंसान की नींद पर असर डालती है। यह तब भी होता है कि जब कोई चांद को देखता भी नहीं है और उसे यह भी नहीं पता होता कि चांद किस अवस्था में है।'शोधकर्ताओं के मुताबिक़ हो सकता है कि कुछ लोग चंद्रमा के लिए बहुत अधिक संवेदनशील हों।उन्होंने यह अध्ययन चंद्रमा का प्रभाव जानने के लिए नहीं किया था। इसके विश्लेषण का ख़्याल उन्हें बाद के सालों में आया। उन्होंने पुराने आंकड़े लिए। उनका विश्लेषण किया कि जब लोग प्रयोगशाला में सोए थे तो उस रात पूर्णिमा थी या नहीं।ब्रिटेन के नींद विशेषज्ञ डॉक्टर नील स्टेनली का कहना है कि छोटा अध्ययन होने के बावजूद इसके नतीजे महत्वपूर्ण हैं। वो कहते हैं, 'पूर्णिमा को लेकर कई कहानियां है। इसलिए अगर उनका कोई प्रभाव पड़ता है, तो उस पर ताज्जुब नहीं होना चाहिए। अब यह विज्ञान पर है कि वह यह पता लगाए कि पूर्णिमा पर हमारे अलग-अलग ढंग से सोने का कारण क्या है।'