वाल्मीकि रामायण में उल्लेखित है, श्रीराम का जन्म चैत्र मास की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में अयोध्या के राजा दशरथ की पहली पत्नी कौशल्या के गर्भ से हुआ था। तब से यह दिन भारत में रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।, इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करने से विशेष पुण्य मिलता है।
श्रीराम जन्मोत्सव का मुख्य आयोजन अयोध्या में होता है। यहां के प्रसिद्ध कनक भवन मंदिर में भगवान राम के जन्म को भव्य तरीके से मनाए जाने का रिवाज है। उनके जन्म के प्रतीक के रूप में विभिन्न मंदिरों में बधाई गीत और रामचरित मानस के बालकांड की चौपाइयों का पाठ किया जाता है।किन्नरों के समूह भी भगवान राम के आगमन को महसूस करते हुए सोहर गाते हैं और नृत्य करते हैं। मान्यता है कि किन्नरों को बच्चों के जन्म पर गाने का अधिकार भगवान राम के जन्म के बाद ही मिला था इसलिए जिस घर में बच्चे जन्म लेते हैं वहां किन्नरों का आना शुभ माना जाता है।इस अवसर पर पूजा के अलावा व्रत का भी विधान है जिसका सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दोनों महत्व है। आमतौर पर घरों एवं मंदिरों में रामदरबार का आयोजन कर उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस व्रत से श्रद्धालु भक्ति के साथ मुक्ति भी प्राप्त करते हैं