नई दिल्ली ,17 जुलाई। केंद्र सरकार ने पाकिस्तान से पलायन कर भारत आए अल्पसंख्यक समुदाओं के मेडिकल ग्रेजुएट्स छात्रों को प्रैक्टिस करने की अनुमति देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके लिए छात्रों को एक परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने उस प्रस्तावित परीक्षा से जुड़े दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए एक एक्सपर्ट ग्रुप का गठन किया है, जो पाकिस्तान से पलायन कर भारत आये और यहां की नागरिकता हासिल कर चुके पड़ोसी देश के उत्पीडि़त अल्पसंख्यक समुदायों के मेडिकल ग्रेजुएट्स को देश में प्रैक्टिस करने के लिए स्थायी पंजीकरण कराने की अनुमति देगी।
यह कदम उन चिकित्सा स्नातकों के लिए उम्मीद की नई किरण जगाता है, जो पाकिस्तान से भारत आने के बाद देश में कानूनी रूप से चिकित्सक के तौर पर सेवा नहीं दे पा रहे हैं। दशकों से, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदू, सिख, जैन और ईसाई समुदाय के लोग भारत में पलायन करने के बाद भारतीय नागरिकता देने की मांग करते रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साल 2021 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान बताया था कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिमों से भारतीय नागरिकता के लिए 8,244 आवेदन मिले थे, जिनमें से 3,117 को स्वीकर कर लिया गया है।
एफएमजीई पास करने के बाद ही कर सकते हैं प्रैक्टिस
विदेशी विश्वविद्यालयों से मेडिकल की डिग्री हासिल करने वाले भारतीय भी एफएमजीई पास करने के बाद ही भारत में प्रैक्टिस कर सकते हैं। हालांकि, पांच अंग्रेजी भाषी देशों-अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड की पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री भारत में मान्य हैं और इन देशों से मेडिकल की डिग्री हासिल करने वालों को परीक्षा में बैठने की जरूरत नहीं पड़ती है।
एनएमसी ने 28 अप्रैल को जारी किया था नोटिस
एनएमसी ने 28 अप्रैल को एक नोटिस जारी कर भारतीय छात्रों से पाकिस्तान के किसी भी चिकित्सा कॉलेज या शैक्षणिक संस्थान में दाखिला न लेने का आग्रह किया था। नोटिस में कहा गया था, भारत या विदेश में रह रहा कोई भी भारतीय नागरिक, जो पाकिस्तान के किसी भी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस-बीडीएस या समकक्ष चिकित्सा पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना चाहता है, वह एफएमजीई में बैठने या पाकिस्तान में प्राप्त शैक्षिक योग्यता (किसी भी विषय में) के आधार पर भारत में रोजगार पाने के लिए पात्र नहीं होगा।