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राहुल गांधी को बार-बार चीन से प्यार क्यों आता है , राजीव गांधी फाउंडेशन को मिले हुए दान का अहसान है क्या : सुधांशु त्रिवेदी

नई दिल्ली , 25 अगस्त : भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के चीन के पक्ष में दिए गए बयान को लेकर कठघरे में खड़ा करते हुए सवाल पूछा कि राहुल गांधी को बार-बार चीन से प्यार क्यों आता है? डोकलाम युद्ध के दौरान राहुल गांधी चीन के राजदूत के साथ खाना खाते हैं और उनके परिवार के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन की सेना को खाना पहुंचाते हैं। राहुल गांधी “हिन्दी चीनी भाई-भाई” का प्यार से लेकर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ हुए उनकी पार्टी के समझौते को सार्वजनिक करें। सुधांशु त्रिवेदी ने राहुल गांधी और पंडित नेहरू के चीन से प्रेम पर तंज कसते हुए कहा कि उस जमाने में हिन्दी चीनी भाई-भाई का प्यार था और आज के जमाने में उस प्यार का इकरार है। उन्होंने कहा कि भारत की सबसे पुरानी पार्टी और पंडित नेहरू खानदान के 53 वर्षीय युवा यानी “सतत युवा” राहुल गांधी जी आदतन और फितरतन भारत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और चीन के बारे में आधारहीन और अनर्गल बयान देने की आदी हो गए हैं। उन्होंने राहुल गांधी को नसीहत दी कि उन्हें को राष्ट्रीय हित के मुद्दे पर पर भारतीय जनता पार्टी से सीखने का प्रयास करना चाहिए और इस तरह की अनर्गल बातें करने से बचना चाहिए।सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि चीन के साथ कांग्रेस सरकार के रिश्ते और भारतीय जनता पार्टी के रिश्ते को स्पष्ट करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद 2020 में चीन के थिंक टैंक ने कहा था कि तियानमेन स्क्वायर नरसंहार के दौर के बाद आज चीन कूटनीतिक तौर पर उस समय की तरह ही विश्व में अलग-थलग पड़ रहा है। ये बातें चीन के लोग कह रहे हैं परन्तु यह समझ से परे है कि राहुल गांधी को चीन की बातों पर इतना प्यार क्यों उमड़ पड़ता है?राहुल गांधी पर कांग्रेस पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ हुए करार के तहत वक्तव्य देने का आरोप लगाते हुए त्रिवेदी ने सवाल उठाया कि क्या यह चीन की सरकार द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन को मिले हुए दान का अहसान है या चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ हुए करार का इकरार है? क्या इस कारण राहुल गांधी भारत सरकार से तकरार करने को तैयार रहते हैं? उन्होंने कहा कि राहुल गांधी कहते हैं कि लोगों ने मुझे बताया है। सवाल उठता है कि ये बताने वाले लोग कौन हैं? सच्चाई यह है कि वे लोग स्वतः बेनकाब हो रहे हैं, क्योंकि राहुल गांधी ने चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के साथ हुए करार की जानकारी नहीं दी थी। उस समझौते के बारे में चीन से फोटो जारी की गयी थी। इसी तरह डोकलाम युद्ध के समय में राहुल गांधी चीन के राजदूत के साथ रात्रि भोज कर रहे थे। राहुल गांधी ने इसकी जानकारी लोगों को नहीं दी थी। चीन ने इसकी भी तस्वीर जारी कर लोगों को बताया था। त्रिवेदी ने कहा कि राहुल गांधी के परिवार का चीन से पुराना रिश्ता रहा है। जहाँ डोकलाम युद्ध के समय राहुल गांधी चीन के राजदूत के साथ खाना खाते हैं, वहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में चीन की फौज को खाना और रसद भी पहुंचायी थी। उन्होंने कहा कि “सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहर लाल नेहरू” पुस्तक के सीरीज-2 वाल्यूम-18 में 21 जून 1952 दिल्ली प्रेस क्लब में हुई प्रेसवार्ता का जिक्र है। उसमें जिक्र है कि “एक पत्रकार ने सवाल पूछा कि नेहरू जी क्या चीन को चावल की सप्लाई की है?” नेहरू जी ने उत्तर दिया था कि “चीन को बहुत अधिक मात्रा में चावल नहीं भेजे गए हैं। स्पेशल केस होने की वजह से हमने कम मात्रा में चावल भेजे हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि दुगर्म पहाड़ी इलाका होने की वजह से मुश्किल मार्ग है, यहां कोई भी काम आसान नहीं है। लेकिन चीन की जरूरत को देखते हुए हम थोड़ी मात्रा में चावल देने हेतु सहमत हुए हैं। यह चावल चीन की सेना के लिए बहुत जरूरी है और हम उन्हें जिन्दा रखने में मदद कर रहे हैं। यद्यपि हम उन्हें तिब्बत के बाहर भी देखना चाहते हैं।इतिहास के पन्ने को पलटते हुए डॉ त्रिवेदी ने कहा कि उस समय चीनी सेना तिब्बत में अत्याचार कर रही थी। उस समय तिब्बत के ल्हासा से चीन का सबसे नजदीकी शहर 2200 किलोमीटर दूरी पर थी और भारत के तवांग से 240 किलोमीटर की दूरी थी। उस वक्त तिब्बत में सड़कों का जाल नहीं था और भारत के तरफ सड़कों की स्थिति बेहतर थी, क्योंकि शताब्दियों से भारत की ओर से व्यापार होता रहा है। भारत से वहां रसद पहुंचाना संभव था। उस वक्त चीन की सेना भूखों मरने की स्थिति में थी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पं नेहरू ने 3,500 टन चावल चीन की सेना को पहुंचाया था। पंडित नेहरू ने खुद ही कहा था कि चीनी सेना को जिन्दा रखने में मदद कर रहे हैं। इसलिए राहुल गांधी जी जब इस विषय पर बोलते हैं तो इन बातों को भी याद रखिए।पंडित जवाहर लाल नेहरू को चीन से लगाव के लिए कठघरे में खड़ा करते हुए डॉ त्रिवेदी ने कहा कि इतिहास में पंडित नेहरू की कांग्रेस पार्टी की सरकार ने सिर्फ भूल नहीं है बल्कि यह ऐतिहासिक अक्षम्य अपराध की तरह है। पंडित नेहरू ने उस देश की फौज को रसद पहुंचायी थी, जिस देश की भारत के प्रति स्पष्ट तौर पर दुश्मनी दिखने लगी थी।देश की युवा पीढ़ी को याद दिलाते हुए डॉ त्रिवेदी ने कहा कि भारत-चीन सीमा के पर तैनात पैरा मिलिट्री फोर्स का नाम इंडो-तिब्बतन बार्डर पुलिस है। ऐसा नाम क्यों है? क्योंकि, 1947 में भारत का पड़ोसी देश चीन नहीं था, बल्कि तिब्बत था। इसलिए आज भी उस बार्डर पैरा मिलिटरी फोर्स का नाम इंडो-तिब्बतन बार्डर पुलिस है।
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की देश के प्रति प्रतिबद्धता का जिक्र करते हुए डॉ त्रिवेदी ने कहा कि 1962 में आरएसएस ने चीन युद्ध में देश हित में नेह

रू सरकार का समर्थन किया था और काम किया था। 1971 के पाकिस्तान युद्ध के समय में अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी की भूरी भूरी प्रशंसा की थी। 1995 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के शासन काल में पाकिस्तान ने जेनेवा में जम्मू एवं कश्मीर को लेकर प्रस्ताव लाया था, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी जेनेवा गए और तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के पक्ष में वक्तव्य दिया था। 2010 में पाकिस्तान के तत्कालनीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने डॉ मनमोहन सिंह के लिए व्यक्तिगत और आपत्तिजनक टिप्पणी की थी तब मुख्यमंत्री के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था कि पाकिस्तान का प्रधानमंत्री कौन होता है जो सवा सौ करोड़ भारतीयों के प्रतिनिधि पर ऐसी टिप्पणी करें। विपक्ष की जिम्मेदारी सही ढंग से नहीं निभाने के लिए कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए त्रिवेदी ने कहा कि एक समय में कांग्रेस कहती थी कि सरकार चलाना उन्हीं को आता है, किन्तु जनता ने दिखा दिया कि सरकार चलाना किसे आता है। सच्चाई यह है कि कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका निभाना नहीं आता है।

25 August, 2023

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