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09 May, 2025
धर्म

राजस्थान में यहां साक्षात प्रकट हुए थे भगवान श्रीकृष्ण

सीकर ,19 अगस्त ; आज जन्माष्टमी है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म दिवस। यूं तो श्रीकृष्ण घट-घट के वासी कहलाते हैं। लेकिन, शहर से 14 किलोमीटर दूर स्थित कदमा का बास गांव में उनके साक्षात प्रगट होने की मान्यता है। जिसका गवाह गांव का नाम व यहां मौजूद कदम्ब के पेड़ व तालाब बताए जाते हैं। कहते हैं कि महाभारत काल में अकाल पडऩे पर कर्दम ऋषि ने यहां घोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें यहीं दर्शन दिए थे। भगवान के कदम इस धरती पर पडऩे पर ही यह गांव कदम का बास कहलाने लगा। जो समय के साथ अपभ्रंश होकर कदमा का बास कहलाने लगा।

सात कदम रखने पर उगे सात कदंब, तालाब भी गवाह

रघुनाथ व राधा- कृष्ण मंदिर के महंत श्रीराम शर्मा ने बताया कि तपस्या से प्रसन्न होकर प्रगटे श्रीकृष्ण ने अकाल दूर करने के लिए कदर्म ऋषि को एक तालाब का वरदान दिया था। इस दौरान भगवान यहां सात कदम चले थे। जहां- जहां उनके कदम पड़े वहीं उनके प्रिय कदंब के सात पेड़ उग गए। इनमें से एक पेड़ तो लुप्त हो गया, पर तालाब के साथ ेसटे कदंब के छह पेड़ यहां अब भी आस्था का बड़ा केंद्र है। जिसके तनों की संख्या की गिनती भी कभी सटीक नहीं होने की मान्यता है।

भाद्रपद में लगता है मेला, हर्ष शिलालेख में भी उल्लेख

कदमा का बास गांव की मान्यता तीर्थ स्थल के रूप में है। जहां हर साल भाद्रपद अमावस्या को मेले का भी आयोजन होता है। जिसमें काफी संख्या में लोग दूर दराज से भी पहुंचकर तालाब में स्नानकर कदंब के पेड़ का स्पर्श और मंदिर में भगवान के दर्शन करते हैं। गांव का उल्लेख हर्ष शिलालेख में भी है। जिसमें कर्दमखत नाम से इसे राजा वत्स द्वारा दान किया जाना बताया है।

करोड़ों की लागत से बन रहा राधा- कृष्ण मंदिर

गांव में तालाब के पास अब एक विशाल राधा- कृष्ण मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। करोड़ों की लागत वाले इस मंदिर को करौली के पत्थर से वहीं के कारीगर तैयार कर रहे हैं। जो दक्षिण भारतीय शैली का होगा। इससे पहले यहां राजा देवी सिंह ने रघुनाथजी के मंदिर की स्थापना करवाई थी। जहां शिवलिंग के साथ श्रीकृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप भी प्रतिष्ठित थे।

कदंब से खास है श्रीकृष्ण का नाता

कदंब के पेड़ से श्रीकृष्ण का गहरा नाता रहा है। शास्त्रों के अनुसार गोकुल में कदंब के पेड़ पर बैठकर ही श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते थे। मां यशोदा को भी उन्होंने इसी पेड़ के नीचे अपने मुंह में ब्रम्हांड के दर्शन करवाए थे। ग्वाल- बालों के साथ कदंब का पेड़ उनके खेलने का प्रमुख स्थान था।

 

19 August, 2022

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