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धर्म

गुरु पूर्णिमा विशेषः भगवान भोलेनाथ ने एक ही शिष्य बनाया, जानिए कौन है वह

रविवार यानी 9 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। गुरु पूर्णिमा यानी गुरु की आराधना और गुरु-शिष्य परंपरा को समझने का दिन। गुरु-पूर्णिमा के पावन अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान परशुराम के जन्मस्थल जानापाव के बारे में। वही भगवान परशुराम, जिन्हें स्वंय भोलेनाथ ने अपना एकमात्र शिष्य बनाया और शस्त्र-शास्त्र का ज्ञान दिया था। वही परशुराम, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 21 बार धरा को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।

मानपुर रोड पर इंदौर से करीब 45 किमी की दूरी पर स्थित है जानापाव, जो विंध्याचल पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है। यह शानदार स्थल महर्षि जमदग्रि की तपोभूमि तथा भगवान परशुराम की जन्मस्थली है। कहा जाता है कि धरती पर सात लोग अमर हैं, जिनमें से एक भगवान परशुराम भी हैं। उनके अमरत्व की कहानी भी बड़ी रोचक है।

ऐसे मिला आशीर्वाद

भगवान परशुराम के पिता भृगुवंशी ऋषि जमदग्रि और माता राजा प्रसेनजीत की पुत्री रेणुका थीं। उनके पांच पुत्र रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्ववानस और परशुराम थे। कहा जाता है कि एक बार रेणुका स्नान के लिए नदी किनारे गईं। वहां राजा चित्ररथ भी स्नान करने आए थे। उन्हें देखकर रेणुका मोहित हो गईं। ऋषि जमदग्नि ने योगबल से यह घटना पता कर ली।

तब क्रोधित हो उन्होंने अपने पुत्रों को मां का शीष काटने का आदेश दिया। मगर, परशुराम को छोड़कर कोई भी ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुआ। क्रोधित पिता ने आज्ञा का पालन न करने पर अन्य पुत्रों को चेतना शून्य होने का श्राप दिया, जबकि परशुराम को वर मांगने को कहा।

तब परशुराम ने तीन वरदान मांगे...

पहला, माता को पुनः जीवन दान दिया जाए और माता को मृत्यु की पूरी घटना याद न रहे। दूसरा, चारों चेतना शून्य भाइयों की चेतना फिर से लौटा आए। तीसरा, वरदान स्वयं के लिए मांगा, जिसके अनुसार उनकी किसी भी शत्रु से या युद्ध में पराजय न हो और उनको लंबी आयु प्राप्त हो। परशुराम के ऐसे वचनों को सुनकर ऋषि जमदग्रि प्रसन्न हो गए और उनकी कामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया।

साढ़े सात नदियां निकली हैं

जानापाव की पहाड़ी पर एक कुंड भी बना है। कहा जाता है कि इस कुंड से साढ़े सात नदियां निकली हैं, जो यमुना और नर्मदा में मिलती हैं। यहां से चंबल, गंभीर, अंगरेड़ व सुमरिया नदियां व साढ़े तीन नदियां बिरम, चोरल, कारम व नेकेड़ेश्वरी निकलती हैं। कहा जाता है यहां स्नान करने से असाध्य रोग और भूत-प्रेत की बाधाएं दूर हो जाती हैं। यहां पर भगवाना परशुराम, भगवान शिव और भगवान भैरवनाथ का मंदिर भी है।

क्यों जाना चाहिए

विंध्याचल पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है, जहां से चारों ओर का नजारा काफी मनमोहक लगता है। यहां से पूरा दृश्य मनोरम दिखाई देता है। परिवार के साथ आप यहां पिकनिक मनाने के लिए जा सकते हैं। मगर, खाने-पीने का सामान आपको साथ में लेकर जाना होगा। यहां पहाड़ी पर चढ़ने के लिए जो घाट बने हैं और पहाड़ी से जो नजारा दिखता है, वो आपको खुश कर देगा। मध्यप्रदेश शासन ने इसके समुचित विकास की योजना बनाई है और मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। यहां पहुंचने के लिए पक्की सड़क बनाई जा चुकी है।

शशांक शेखर बाजपेई ; देनिक नईदुनिया

09 July, 2017

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