सुबह जहां लोग अपनी रोजी-रोटी की तलाश में घरों से निकलते हैं, खबड़ा के 50 वर्षीय आचार्य अरुण बोर्ड लगाये साइकिल पर सवार लोगों को दिखाई देते हैं। यह कोई पागलपन नहीं, बल्कि संस्कृत भाषा को खोने से बचाने की सार्थक पहल है। अब तक वे हजारों बच्चों को संस्कृत की शिक्षा दे चुके हैं। संस्कृत भाषा को बचाने व जन-जन में इसकी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए आचार्य अरुण 30 सालों से मुहिम चला रहे हैं। संस्कृत सिखाने के साथ-साथ वे बच्चों को संस्कृत से अंग्रेजी अनुवाद की कला से भी रूबरू करा रहे हैं। इसके लिए वे सुबह से शाम तक शहर से लेकर गांव तक साइकिल पर सवार हो घुमते रहते हैं। इसके साथ ही स्कूल शिक्षकों को भी शिक्षा और परीक्षा पद्धति में सुधार लाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। संस्कृत को पिछड़ता देख लिया संकल्प आचार्य अरुण बताते हैं कि कॉलेज के जीवन से ही संस्कृत भाषा में उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने संस्कृत से एमए किया। दूसरी भाषाओं के मुकबाले संस्कृत को पिछड़ता देख इसके प्रचार-प्रसार का संकल्प लिया। 1986 में पारू के एक स्कूल से इस अभियान की शुरूआत की। पहले बिना बोर्ड और बाद में बोर्ड लगाकर लोगों को संस्कृत जानने को प्रेरित करने लगे। वे कहते हैं- अब बोर्ड व साइकिल मेरी पहचान बन चुकी है। बोर्ड पर लिखे नंबर से स्कूल के शिक्षक व अन्य लोग कॉल कर उन्हें बच्चों को संस्कृत सिखाने के लिए बुलाते हैं। वे छात्रों का बैच बनाकर दस दिन तक दो-दो घंटे संस्कृत सिखाते हैं।