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हिजाब को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बड़ी बहस, कहा- रुद्राक्ष और क्रॉस की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती

नई दिल्ली 07 सितम्बर . कर्नाटक हिजाब मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रुद्राक्ष और क्रॉस की तुलना हिजाब से नहीं हो सकती। ये कपड़े के अंदर पहने जाते हैं। हिजाब की तरह ये बाहर से नज़र नहीं आते। लिहाजा इनसे अनुशासन भंग होने का सवाल ही नहीं उठता। कोर्ट ने ये टिप्पणी याचिकाकर्ता की ओर से पेश देवदत्त कामत की दलीलों पर की। कामत का कहना था कि स्कूल में छात्र क्रॉस या रुद्राक्ष भी पहनते है, सिर्फ एक समुदाय विशेष को टारगेट किया जा रहा है।
आज सुनवाई के दौरान देवदत्त कामत ने अपनी दलीलों के समर्थन में कई देशों के फैसले का हवाला दिया तो जस्टिस हेमंत गुप्ता ने उन्हें टोकते हुए कहा – साउथ अफ्रीका को छोड़िए, भारत की बात कीजिए। दुनिया में कोई देश भारत जैसी विविधताओं से नहीं भरा है। बाकी देशों में अपने सभी नागरिकों के लिए एक समान क़ानून है।
‘वर्दी के साथ मैचिंग हिजाब में क्या दिक्कत’
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश देवदत्त कामत ने कहा कि अगर स्कूल यूनिफॉर्म से मैच करता हुआ कोई स्कार्फ पहनकर आता है तो इसमे क्या दिक्कत है? केंद्रीय विद्यालयों में भी हिजाब पहनने की छूट है। वहां छात्राएं स्कूल यूनिफॉर्म से मैच करता हुआ हिजाब पहन सकती है। हमने ये दलील कर्नाटक हाई कोर्ट में भी रखी थी लेकिन हाईकोर्ट ने ये कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि केंद्रीय विद्यालयों का मसला राज्य सरकार के स्कूलों से अलग है। कामत ने बिजोय इमैनुअल बनाम केरल विवाद में दिए सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगान न गाने वाले छात्रों को स्कूल से निकालने के फैसले को ग़लत करार दिया था।
याचिकाकर्ताओ की ओर से पेश देवदत्त कामत ने कहा कि ये मसला संविधान पीठ को सुनना चाहिए। राज्य सरकार स्कूली छात्रों के मूल अधिकारों की रक्षा करने में असफल रही है। हम स्कूल यूनिफॉर्म के खिलाफ नहीं हैं। हमारा एतराज सिर्फ सरकार के इस रवैये पर है जिसके मुताबिक स्कूल की वर्दी पहने रहने के बावजूद हिजाब पहनी हुई छात्राओं को प्रवेश नहीं मिलेगा। क्या स्कूल में पढ़ने की शर्त के तौर पर बच्चों को अपने मूल अधिकारों को छोड़ना होगा। हिजाब सिर्फ हेड स्कार्फ़ है,कोई बुर्का नहीं।
‘कर्नाटक सरकार का आदेश समुदाय विशेष के खिलाफ’
सुनवाई के दौरान देवदत्त कामत ने कर्नाटक सरकार के आदेश को पढ़ा। कामत ने कहा कि इस आदेश में सरकार हिजाब पर रोक को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन नहीं मान रही है। जाहिर है, स्कूलों का निर्णय स्वतंत्र नहीं था, उन पर सरकार का दबाव था और सरकार इस आदेश के जरिये समुदाय विशेष को टारगेट कर रही है। दरअसल मंगलवार को हुई सुनवाई में कर्नाटक के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी का कहना था कि सरकार ने अपनी तरफ से स्कूल / कॉलेज में कोई ड्रेस कोड तय नहीं किया, बल्कि हर शैक्षणिक संस्थान को ये अधिकार दिया कि वो अपने ड्रेस कोड ख़ुद तय कर सकते है।
कामत ने कहा कि आर्टिकल 19 के तहत दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत अपनी पंसद की ड्रेस पहनने का अधिकार भी शामिल है। 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोर्ट ने 19(1)(a) के तहत इसे मूल अधिकारों का हिस्सा माना था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लेकिन ये अधिकार गैरवाजिब नहीं हो सकता।अगर आपके हिसाब से कपड़ो के चयन का अधिकार मूल अधिकार है है तो क्या बिना कपड़ों के रहना भी मूल अधिकार माना जाए। देवदत्त कामत ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी के वाजिब प्रतिबंध हो सकते है लेकिन ये तभी सम्भव है जब ये कानून-व्यवस्था या नैतिकता के विरुद्ध हो। यहां लड़कियों का हिजाब पहनना न कानून-व्यवस्था के खिलाफ है, न नैतिकता के इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि आपको सिर्फ स्कूल में पहनने से मना किया गया है। बाहर नहीं, मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी।

07 September, 2022

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