अलवर ,11 अगस्त : मैं पांच साल से अपने भाई से नहीं मिली हूं, हर रक्षाबंधन पर मुझे मेरे भाइयों की याद आती है, जब बहनें अपने भाइयों के राखी बांधती हैं तो मैं हाथ में राखी लेकर इंतजार करती हूं कि मेरे भाई कब आएंगे। किसी के एक भी भाई नहीं होता लेकिन मेरे दो दो भाई होने के बाद भी में उनको राखी नहीं बांध पा रही हूं मेरे जैसी भाग्यहीन बहन कोई नहीं होगी। जिसने पहले अपने मां बाप को खो दिया और अब मेरे भाई भी मेरे पास नहीं है। राखी और भाई दौज पर भाइयों की याद सताती है पता नहीं कैसे होंगे और किस हाल में होंगे।
यह व्यथा है एक 11 साल की मासूम बालिका की जो अलवर के एक बालिका गृह में रह रही है। जब वह बहुत छोटी थी तो 2015 में कोटा में ट्रेन में सफर के दौरान अपने दो भाइयों के साथ माता पिता से बिछड गई थी। बहुत खोजने पर भी माता पिता नहीं मिले और वह दो भाइयों के साथ रेलवे स्टेशन पर ही रुक गई। भूख लगी तो होटल पर खाना मांग रही थी तो रेलवे पुलिस ने इन तीनों को कोटा चाइल्ड लाइन को सौंप दिया। उस समय इन तीनों बच्चों की उम्र मात्र 4,5 और 6 साल थी।
बच्चों ने चाइल्ड लाइन को बताया कि वो किशनगढ के रहने वाले हैं तो चाइल्ड व बाल कल्याण समिति ने अजमेर के बालगृह में भेज दिया। वहां भी माता पिता नहीं मिले तो अलवर बाल कल्याण समिति के सुपूर्द कर दिया। तब से ये तीनों भाई बहन अलवर के बालक व बालिका गृह में रह रहे थे। राखी आदि पर्व पर ये तीनों एक दूसरे से मिलते थे। सन 2017 में अलवर के बाल गृह में रहने वाले दो भाइयों को विराट नगर के बालगृह में भेज दिया। इसके बाद यहां से जयपुर के एसओएस बाल गृह में भेज दिया। वहां से मेरे भाई कहां गए किसी को पता नहीं है। मैं चाहकर भी अपने भाइयों से नहीं मिल पा रही हूं।
बालिका गृह में रह रही यह बालिका कक्षा 7 की छात्रा है। बालिका गृह के संचालक चेतराम सैनी ने बताया कि करीब पांच साल पहले बहुत कोशिशों के बाद इस बालिका को जयपुर के बालगृह में भाइयों से मिलवाया था। लेकिन अब इसके भाई कहां हैं ना तो जयपुर बाल कल्याण समिति को पता है और ना ही उस बालगृह से कोई जानकारी मिल पा रही है जिसके पास वो रहते थे। कोई भी इस बालिका की पीडा समझने को तैयार नहीं। इसके लिए जयपुर बाल कल्याण समिति को कई पत्र दिए हैं लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।