भोपाल 3 अगस्त ; मध्य प्रदेश की सरकार मनरेगा के मजदूरों को देश के 34 राज्यों में सबसे कम मजदूरी का भुगतान करती है। जो विगत वर्ष ?193 प्रति दिवस एवं प्रचलित वर्ष में ?204 प्रति दिवस है। जबकि सिक्किम और निकोबार जैसे छोटे राज्यों में भी मजदूरी की दरें ?300 प्रति दिवस से ज्यादा हैं। मध्यप्रदेश में निरंतर मनरेगा के मजदूर उपेक्षा के शिकार हैं तथा मशीनों के द्वारा गुपचुप काम करवाए जाने के कारण 20 प्रतिशत मजदूरों को भी 100 दिवस का गारंटीड रोजगार नहीं मिल पाता है।प्रदेश कांग्रेस के मीडिया उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने कहा की मजदूरी की दरें देश में सबसे कम होने के बावजूद प्रदेश सरकार 10 सालों से मजदूरी भुगतान को लंबित रखने में माहिर हो चुकी है। 19-20 में कमलनाथ की सरकार ने जरूर लंबित भुगतान घटाकर 123 करोड़ पर ला दिया था, किंतु 20- 21 में फिर से मजदूरों के भुगतान रुकने लगेऔर आंकड़ा 20-21 में 233 करोड़ और 21-22 में बढ़कर 249 करोड़ पार कर गया। गुप्ता ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार को यह बताना चाहिए कि मजदूरी की दरें न्यूनतम होने के बावजूद लंबित भुगतान का आंकड़ा क्यों बढ़ता जा रहा है?गुप्ता ने मांग की कि सरकार मनरेगा की न्यूनतम मजदूरी को राष्ट्रीय औसत के समतुल्य लाए और विलंबित मजदूरी का तत्काल भुगतान करे।जब सरकार तनख्वाह बांटने और हवाई जहाज खरीदने के लिए करोड़ों रुपए का उठाती है तो मजदूरी के छोटे से भुगतान के लिए मनरेगा मजदूरों को क्यों तरसा रही है?